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रांची की प्राचीन दुर्गा बाड़ी: 142 वर्षों से जीवित है मां दुर्गा की आराधना की परंपरा

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भारत में शक्ति की उपासना का सबसे बड़ा पर्व है दुर्गा पूजा, जिसे पूरे देश में धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। झारखंड की राजधानी रांची का ऐतिहासिक दुर्गा बाड़ी इस पूजा की भव्य परंपरा का जीवंत उदाहरण है। यहाँ 1883 से निरंतर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना हो रही है और आज यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी पहचाना जाता है।


142 वर्षों का गौरवशाली इतिहास

रांची की दुर्गा बाड़ी की स्थापना वर्ष 1883 में की गई थी। तब से लेकर आज तक बिना रुके मां दुर्गा की पूजा हर साल पूरे विधि-विधान से आयोजित की जाती है। यह पूजा अंग्रेज़ों के दौर में भी नहीं रुकी थी और आज भी पूरे श्रद्धा भाव से जारी है।

  • यह पूजा परंपरा बंगाली समाज के सामूहिक योगदान से शुरू हुई थी।
  • पूजा में मूर्ति निर्माण, अनुष्ठान, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का विशेष महत्व है।
  • स्थानीय लोग इसे केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का उत्सव मानते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  • दुर्गा पूजा केवल मां की आराधना ही नहीं बल्कि शक्ति, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है।
  • पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इसमें भाग लेते हैं और इसे जीवित परंपरा बनाए हुए हैं।
  • उत्सव के दौरान न केवल पूजा होती है, बल्कि विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, गीत-संगीत, नृत्य और प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
  • इस अवसर पर भक्ति गीतों की धुन, रोशनी और सजावट से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है।

विशेष आकर्षण

  1. प्रतिमा और सजावट – हर साल मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा आकर्षण का केंद्र होती है।
  2. सांस्कृतिक कार्यक्रम – कविता, नृत्य, गायन, नाटक और पारंपरिक प्रदर्शन।
  3. प्रतियोगिताएं – बच्चों और युवाओं के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन कर उत्सव को और जीवंत बनाया जाता है।
  4. भोग और प्रसाद – भक्तों को विशेष प्रसाद और भोग वितरण किया जाता है।

समाज में योगदान

दुर्गा बाड़ी केवल एक पूजा स्थल नहीं बल्कि समाज को जोड़ने वाला मंच है। यहां हर वर्ग और समुदाय के लोग एकत्र होकर आस्था और संस्कृति का उत्सव मनाते हैं। यह सामाजिक सद्भाव और एकता का प्रतीक है।


निष्कर्ष

रांची की दुर्गा बाड़ी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि 142 वर्षों से चलती आ रही जीवंत परंपरा है। यह पूजा न केवल भक्ति का प्रतीक है बल्कि समाज को जोड़ने और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने का भी माध्यम है।
हर साल यहां उमड़ने वाली श्रद्धा, आस्था और उत्साह इस बात का प्रमाण है कि मां दुर्गा की शक्ति और आशीर्वाद सदैव भक्तों के साथ है।

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